इंदौर। बुरहानपुर के 40 वर्षीय युवक के पेट में बार बार पानी भर जाता था जब जांच की गई तो पाया कि वो लिवर से जुड़ी एक क्रोनिक डिजीज ‘लिवर सिरोसिस’ से पीड़ित है। लिवर सिरोसिस की बीमारी आमतौर पर तब होती है, जब लिवर लंबे समय से खराब चल रहा होता है। इस बीमारी की वजह से हेल्दी टीशूज (ऊतक) डैमेज होने लगते हैं और लिवर अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाता। युवक देश के कई बड़े अस्पतालों में इलाज करा चुका था, लेकिन जब इसके बाद भी समस्या बढती चली गई तो इंदौर के डॉ विनीत गौतम ने मरीज को शहर के जाने माने हॉस्पिटल शैल्बी मल्टी स्पेशिलिटी हॉस्पिटल जाने की सलाह दी जहाँ शैल्बी हॉस्पिटल की टीम ने लिवर ट्रांसप्लांट कर युवक को नई जिंदगी दी।
लिवर ट्रांसप्लांट एवं रोबोटिक कैंसर सर्जन डॉ विनीत गौतम ने बताया, “लिवर सिरोसिस में लिवर विषाक्त पदार्थ यानी टॉक्सिन्स को फिल्टर नहीं कर पाता और शरीर की जरूरत के मुताबिक प्रोटीन नहीं बना पाता। इससे खून के रास्ते में रुकावट पैदा होती है, ये स्थिति इतनी खराब है कि इलाज के बिना व्यक्ति का लिवर पूरी तरह से काम करना बंद कर सकता है। लिवर सिरोसिस होने पर मरीज को पीलिया, खून की उल्टी तथा पेट में पानी आने जैसी परेशानियां होती हैं। इसका मुख्य लक्षण पीलिया या जॉन्डिस भी होता है। इसके अलावा पेट में पानी भी भर सकता है। लिवर कमजोर हो जाने से लिवर काफी सख्त हो जाता है तथा इसकी वजह से पेट में खून की धमनियों में अत्याधिक प्रेशर बनने से पेट में पानी आ जाता है तथा आंतों के अंदर खून की धमनियों के फूल जाने से ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। युवक इन्ही सारी समस्याओं से जूझ रहा था, जिसका एकमात्र विकल्प लिवर ट्रांसप्लांट था। मैंने उसे शैल्बी जाने का सुझाव दिया जहाँ उसका सफलतापूर्वक लिवर ट्रांसप्लांट किया गया।”
शैल्बी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट के डॉ. इक़बाल नबी कुरैशी ने बताया, “लिवर सिरोसिस लिवर की लंबे समय चलने वाली बीमारियों में से एक है जो समय के साथ लिवर के लगातार खराब होने से होती है। लिवर सिरोसिस के लगभग 10 से 15 लाख नये मरीज़ प्रतिवर्ष भारत में पाए जाते हैं तथा इसमें से लगभग 30000 से 40000 मरीज़ को लिवर प्रत्यारोपण (लिवर ट्रांसप्लांट) की जरूरत पड़ती है। जब युवक यहाँ आया तो हालत काफी गंभीर थी, यहाँ उसका जल्द से जल्द उपचार शुरू कर उनका लिवर ट्रांस्प्लांट किया गया, मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है तथा उसका लिवर सही ढंग से काम कर रहा है एवं जल्द ही उसे डिस्चार्ज भी कर दिया जाएगा। इस केस की खास बात यह है कि बहन ने लिवर दान कर भाई की जान बचाई। यह शैल्बी का मध्यभारत में पहला लिवर ट्रांसप्लांट था, जिसे शैल्बी इंदौर की टीम द्वारा सफलतापूर्वक किया गया है।”
लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए शैल्बी हॉस्पिटल के कंसल्टेंट, लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. निशांत शिव ने कहा, “डोनर मरीज के परिवार से है तो यह प्रक्रिया शीघ्र पूरी हो जाती है लेकिन कैडेवर लिवर ट्रांसप्लांट के मरीजों को लिवर के लिए कई महीनों या फिर सालों तक भी इंतजार करना पड़ सकता है। डोनेशन से पहले डोनर के कई तरह के टेस्ट होते हैं। लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन करीब 12 घंटे चलता है, इसमें मरीज का खराब लिवर पूरी तरह से निकाल दिया जाता है तथा उसके स्थान पर नए लिवर को लगा दिया जाता है। लिवर ट्रांसप्लांट के बाद कुछ कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं जैसे कि रिजेक्शन, इंफेक्शन, ब्लीडिंग, पित्त का स्राव, हर्निया आदि। मरीज को ऑपरेशन के बाद कई तरह की सावधानियां बरतनी होती है, जैसे कि खानपान का विशेष ध्यान रखना तथा भीड़ से बचना। इसके अलावा मरीज की जनरल सेहत का भी काफी ध्यान रखना पड़ता है, जैसे ब्लड प्रेशर एवं शुगर को कंट्रोल रखना तथा नियमित व्यायाम करना मरीज के लिए फायदेमंद हो सकता है। इस तरह मरीज को नई जिंदगी मिलती है, वह बेहतर काम कर सकता है और पूरी जिंदगी बिना किसी परेशानी के जी सकता है।”
शैल्बी हॉस्पिटल्स के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी डॉ अनुरेश जैन एवं मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ विवेक जोशी ने बताया, “पिछले कुछ सालों में लिवर से संबंधित रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है और सही इलाज़ की सुविधा न होने पर मरीज भटकते रहते हैं। हमें बेहद ख़ुशी है कि शैल्बी हॉस्पिटल का मध्यभारत का पहला लिवर ट्रांसप्लांट इंदौर शैल्बी की टीम के द्वारा किया गया है, इसी साल शैल्बी मल्टी ने नई डायग्नोस्टिक्स और तकनीकों से लैस और गंभीर मामलों को संभालने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की पैनल वाले लिवर ट्रांसप्लांट सेंटर की शुरुआत की थी जहाँ गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और लिवर की समस्या वाले मरीजों का उपचार किया जा रहा है। इसका लाभ पूरे मध्यभारत के लोगों के द्वारा लिया रहा है। हम इसी प्रतिबद्धता के साथ आगे भी काम करने के लिए संकल्पित है।”