लंग कैंसर अवेयरनेस मंथ: जागरूकता ही है बचाव का मंत्र

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इंदौर सर्दियों की दस्‍तक के साथ ही शहरों में स्‍मॉग लेवल काफी बढ़ जाता है, जिससे कई सारी बीमारियाँ तेजी से बढ़ने लगती है, ऐसे में लंग कैंसर का जोखिम भी कई गुना बढ़ जाता हैं। लेकिन लंग कैंसर के लक्षण बेहद सामान्य होने के कारण अक्सर इसकी पहचान नहीं हो पाती और व्यक्ति को जान से हाथ धोना पढ़ जाता है। लंग कैंसर के करीब 45% मरीजों में इसका पता तब चल पाता है, जब कैंसर शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंच चुका होता है। लेकिन अगर कैंसर के लक्षणों को शुरूआती दौर में ही पहचान कर इसका उपचार शुरू कर दिया जाए तो इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है। जागरूकता की कमी के कारण होने वाले स्वास्थ्य नुकसानों को देखते हुए हर वर्ष नवंबर के महीने को लंग कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लंग्स के कैंसर के प्रति लोगों को जागरूरक करना और समय पर उपचार मुहैया करने के लिए प्रेरित करना है।

मेदांता सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ तनय जोशी के अनुसार, “पिछले कुछ सालों में लंग्स कैंसर में भी तेजी देखी गई है। इंडियन काउंलिस ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के शोधकर्ताओं की एक स्टडी के अनुसार पिछले 10 साल की तुलना में 2025 तक भारत में लंग्स कैंसर के केस 7 गुना तक बढ़ सकते हैं। लंग कैंसर खतरा उन लोगों में अधिक है जो धूम्रपान करते हैं, सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने पाया है कि लंग्स कैंसर का सबसे मुख्य कारण स्मोकिंग है। 90 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर के मामले धूम्रपान का परिणाम होते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसा देखा जा रहा है कि जो लोग धूम्रपान नहीं करते हैं वो भी इस बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं एस्बेस्टोस, आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, निकल, कुछ पेट्रोलियम उत्पाद, यूरेनियम जैसे हानिकारक पदार्थ लंग कैंसर में योगदान देते हैं। लंग कैंसर का उपचार संभव है, बस जरूरत है इसके लक्षणों को समय से पहचानना।“

डॉ जोशी आगे बताते हैं, “सांस लेने पर सीने से सीटी जैसी आवाज सुनाई देना, लंबी या गहरी सांस लेने में तकलीफ, गले और चेहरे में सूजन, पीठ, कंधों और सीने में दर्द,  प्रिवियस रेडिएश्न थेरेपी, कफ संबंधित परेशानी, थूक में खून या कफ, काफी समय से चल रही खांसी, सांस फूलना, छाती में दर्द, गला बैठना, अकारण वजन कम होना, हड्डियों में दर्द और सिरदर्द लंग कैंसर के लक्षणों हो सकते हैं। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर अपने डॉक्टर की सलाह से जांच करानी चाहिए। कैंसर को पहचानने के लिए एक्स-रे, ब्रोंकोस्कोपी, सीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन और पीईटी के अलावा सबसे सटीक तरीका बायोप्सी है जहाँ कैंसर की कोशिकाओं को निकालकर माइक्रोस्कोप द्वारा उनकी जांच की जाती है। यह मरीज के स्थिति पर निर्भर करता है कि उसे किस तरह का उपचार दिया जाए। फेफड़ों के कैंसर से बचने के लिए धूम्रपान बंद करें, कार्सिनोजेनिक पदार्थों, सेकेंड हैंड स्मोक से बचें, फल और सब्जियों से भरे आहार के सेवन करें, नियमित तौर पर डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज का अभ्यास करें, एक्सरसाइज, योग और प्राणायाम करें और दिनचर्या में हरी सब्जियां, मौसमी फल, नेचुरल फूड्स, जो एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हेल्दी डाइट को अपनाएं।”

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