झारखण्ड में एम्बुलेंस सेवा के ऑपरेशन टेंडर में विवाद

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रांची. झारखण्ड में एम्बुलेंस सेवा प्रदाता कंपनी का कार्यकाल पूरा हो चुका है और सरकार इसे टेंडर के माध्यम से अब बदलने की योजना बना रही है। हालांकि, इस मुद्दे पर अब विवाद हो गया है क्योंकि सरकार टेंडर देने के लिए पक्षपात कर रही है।इस मामले पर सुनवाई के लिए कोर्ट में एक मामला चल रहा है, लेकिन सरकार ने फैसले का इंतजार नहीं करते हुए पहले ही टेंडर देने की कोशिश की है। यह स्थिति राज्य की न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हुए एक विवाद का विषय बन गई है।

दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने टेंडर देने से पहले ही दूसरी कंपनी के पक्ष में निर्धारित कर दिया है, जो न्यायालय में पेंडिंग मामले में शामिल है। इसके अलावा, कम्पनी द्वारा इस विवाद में टेंडर जारी करने के लिए कोर्ट से जल्दी फैसला आने की मांग की जा रही है।

यह विवादित नीलामी प्रक्रिया भी इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास और सरकारी नीतियों को लेकर प्रश्नचिन्ह हो रही है। विपक्ष के द्वारा इस मामले पर सरकार को नीतिगत त्रुटि करने का आरोप लगाया जा रहा है, जबकि सरकार इसका उत्तर देते हुए कह रही है कि टेंडर नीतियों के आधार पर ही दिया जाएगा।

यह स्थिति अब उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय लेने की प्रतीक्षा कर रही है और आगामी सप्ताह में सुनवाई की जानी है। जनता और सरकारी अधिकारियों द्वारा इस मामले पर बड़ी चर्चा हो रही है और इसके परिणामस्वरूप एम्बुलेंस सेवा प्रदाताओं की वित्तीय और सामाजिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

टेंडर में कुछ अनोखी शर्तें जोड़ी

  • टेंडर में हिस्सा लेनेवालों के लिए बोली की अधिकतम और न्यूनतम सीमा तय कर दी गयी.
  • बिडर बेस प्राइस से पांच प्रतिशत अधिक या पांच प्रतिशत तक ही रेट कोट कर सकते हैं.
  • टेंडर में हिस्सा लेनेवालों को 28 करोड़ के टर्नओवर से अधिक के प्रति चार करोड़ के टर्नओवर पर एक अतिरिक्त अंक देने की शर्त लगा दी गयी

क्या है मामला?

दरअसल 108 सेवा के तहत एडवांस लाइफ सेविंग और बेसिक लाइफ सेविंग की सुविधाओं से लैश 337 एंबुलेंस के ड्राइवरों का कांट्रैक 15 नवंबर 2022 को ही समाप्त हो गया था.लेकिन अब तक इन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया है. 108 एंबुलेंस की सेवा झारखंड की लाइफ लाइन कही जाती थी. इसकी शुरुआत 15 नवंबर 2017 को की गयी थी सरकार ने एमओयू में कहा था कि सरकार और कंपनी के बीच परस्पर समन्वय स्थापित होने के साथ यदि कंपनी का काम बेहतर होता है तो सेवा का विस्तार किया जाएगा. वर्तमान कम्पनी 1.15 लाख प्रति एम्बुलेंस की राशी तय थी पर नई कम्पनी ने यह कीमत 1.35 लाख बताई. कई जिलों से ‘एक्सेलेंस’ का तमगा मिलने के बाबजूद भी सरकार ने अगस्त में एक टेंडर निकाला लेकिन एम्बुलेंस कम्पनी ने किसी तरह की आपत्ति नहीं ली लेकिन जब नई कम्पनी प्रतिस्पर्धा में आई तो नवम्बर के बाद सरकार ने पुराने टेंडर को निरस्त करते हुए एक और टेंडर निकाला जिसकी शर्तें इस तरह की थी कि उससे नई प्रतिस्पर्धी कंपनी को फायदा हो. जब किसी आधार पर वर्तमान कम्पनी को बाहर नही किया जा रहा तो सरकार ने तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा कि अगर दोनों कम्पनियों का टेंडर टाई होता है तो अंततः कॉन्ट्रैक्ट उस कम्पनी को दिया जाएगा जिसका टर्न ओवर ज्यादा है, देश में कहीं भी किसी भी टेंडर को सबसे ज्यादा टर्नओवर के आधार पर तय नहीं किया जाता है। इसके अलावा टेंडर में दूसरे वर्ष की सेवा के लिए मूल्य नहीं बताया गया जो टेंडर के मूल उद्देश्य को ख़त्म कर देता है।इस शर्त की वजह से टेंडर में वही बिडर सफल होगा, जिसका टर्नओवर सबसे ज्यादा होगा. इस कंपनी के साथ किये गये इकरारनामे के अनुसार, पांच साल अधिक के एंबुलेंस के बदलने की जिम्मेवारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की होगी. हालांकि नये टेंडर की शर्तों के अनुसार ,पुराने सर्विस प्रोवाइडर से नये सर्विस प्रोवाइडर को एंबुलेंस सौंपने के क्रम में एंबुलेंस में खराबी व अन्य की मरम्मत पर होनेवाले खर्च की वसूली पुराने सर्विस प्रोवाइडर से होगी l

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