– प्रॉपर्टी बेचने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले कॉलोनाइजर की हकीकत
– 2011 में एक वर्ष में विकास करने का किया वादा, आज तक कोई भी काम पूरा नहीं हो सका
– 2015 में उपभोक्ता फोरम पहुँचा मामला, मूलधन लौटाने के साथ ही 12 प्रतिशत भी देने के आदेश
JAI HIND NEWS
इंदौर। अपनी कॉलोनियों के प्लॉट बेचने के लिए खरीदारों को सुविधाओं के सब्जबाग दिखाने वाले कॉलोनाइजरों की चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। मामला जाने-माने कॉलोनाइजर डी.एच.एल इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्रा. लि. से जुड़ा है। 2011 में प्लॉट बुक करते समय खरीदार से एक साल में कई तरह की सुविधा उपलब्ध करवाने का वादा किया गया था। इसका उल्लेख सेल एग्रीमेंट में भी किया गया। दो साल में 7 लाख 20 हजार रुपए ले लिए गए लेकिन आज तक सभी सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई जा सकी। पीड़ित ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद फोरम ने फरियादी के पक्ष में फैसला देते हुए कॉलोनाइजर को आदेश दिया कि वह 12 प्रतिशत ब्याज के साथ मूल धन लौटाए और 50 हजार रुपए मानसिक कष्ट एवं 10 हजार रुपए परिवाद शुल्क भी अदा करे।
न्यायिक सेवाएं उपलब्ध करवाने वाली फर्म विधिक सेवा के संचालक एवं उपभोक्ता मामलों के विशेषज्ञ एडवोकेट चंचल गुप्ता ने बताया कि उनके पक्षकार पंकज नागर एवं सचिन भंडारी ने डीएचएल इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्रा. लि. से 2011 में प्लॉट खरीदा था। कॉलोनाइजर की ओर से गांव मौजा रेवाड़, तहसील देपालपुल में विकसित की जाने वाली मिलियन एरियस लैंडमार्क फेज 1 में 1500 वर्ग फीट के प्लॉट नंबर 355 का सौदा 336 रुपए प्रति वर्ग फीट में किया गया था और इसके लिए 16 अगस्त 2011 को सेल एग्रीमेंट किया गया। इसमें सौदे की दिनांक के एक वर्ष के भीतर विकास कार्य पूरा करने के लिए आश्वस्त किया गया था। 5 लाख 4 हजार रुपए में सौदा तय किया गया। खरीदार ने 1 लाख 44 हजार रुपए की राशि दो चेक के माध्यम से अदा की जबकि 3 लाख 60 हजार रुपए की राशि 24 किस्तों के रूप में जमा करवाई गई। किश्तों में पैसा जमा करवाने की योजना में खरीदार से कुल 7 लाख 20 हजार रुपए जमा करवाए गए। लेकिन सौदे की तारीख के एक वर्ष के भीतर जो विकास कार्य किए जाने थे उनमें से कोई भी काम पूरा नहीं किया जा सका।
पहले कॉलोनाइजर से लगाई गुहार, बाद में फोरम की शरण
एडवोकेट गुप्ता ने बताया कि पक्षकार ने सारी किश्ते जमा करवाने के बाद कई बार कॉलोनाइजर के दफ्तर के चक्कर काटे और विकास कार्य पूरा करने के लिए एवं रजिस्ट्री करवाने के लिए कहा लेकिन हर बार टालमटोल की गई। 2013 से 2015 तक परेशानी झेलने के बाद उन्होंने फोरम की शरण ली। एडवोकेट सपना यादव के माध्यम से फोरम के समक्ष मामला प्रस्तुत किया गया और डीएचएल इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्रा. लि. के वाइस चेयरमैन संजीव अग्रवाल, पार्टनर संतोष सिंह और एक्जीक्यूटिव चित्रा शर्मा के खिलाफ वाद दायर किया गया। फोरम को इस बात के तर्क और सबूत पेश किए गए कि कॉलोनाइजर ने अपना वादा पूरा नहीं किया और इतने वर्ष बाद आज भी बाउंड्री वॉल, स्विमिंग पूल, जॉगिंग ट्रेक, सड़कें, डिवाईडर, खेल का मैदान, हॉर्स राइडिंग ट्रैक, बोरवेल्स, रेस्टोरेंट, डिस्को थेक, सिक्युरिटी गार्ड आदि का काम पूरा नहीं किया जा सका है। फोरम ने सेवाओं में कमी माना और कॉलोनाइजर को आदेश दिया कि वह परिवादी को वाद दायर करने की तारीख से अब तक 7 लाख 20 रुपए की राशि एवं इसका 12 प्रतिशत सालाना ब्याज एक महीने के भीतर अदा करे साथ ही मानसिक पीड़ा की क्षतिपूर्ति के लिए 50 हजार रुपए और परिवाद व्यय 10 हजार रुपए का भुगतान भी करे।