इंदौर : स्ट्रोक या ब्रेन अटैक या पक्षाघात नाही सिर्फ मृत्यु दर और आजीवन विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है, बल्कि एक बार जब आपको स्ट्रोक हो जाता है, तो यह आपके स्वास्थ्य और जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ सकता है। यह देखा गया है कि भारत में स्ट्रोक की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं जो चिंताजनक है | इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, हर साल 1.8 मिलियन भारतीय स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। स्ट्रोक की अनुमानित प्रसार दर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 1 लाख व्यक्तियों पर 84 – 262 स्ट्रोक के बीच और शहरी क्षेत्रों में प्रति 1 लाख व्यक्तियों पर 334 – 424 स्ट्रोक के बीच है। 1982 से 2004 तक स्ट्रोक से संबंधित मृत्यु दर में 7.8% की वृद्धि हुई थी । पिछले डेढ़ दशक के दौरान, भारत में स्ट्रोक के मामलों की संख्या में 17.5% की वृद्धि हुई है। इन्ही आंकड़ों से यह भी पता चला है कि लगभग 10% से 15% स्ट्रोक 40 वर्ष से कम आयु के लोगों में होते हैं। अस्पतालों में भर्ती होने वाले हर पांचवे रोगी की आयु 40 वर्ष से कम होती है।
“नेशनल वाइटल स्टैटिस्टिक्स” रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्ट्रोक अब सांस की पुरानी बीमारियों तथा दुर्घटनाओं के बाद मृत्यु का और एक प्रमुख कारण है। जिस तरह से स्ट्रोक और स्ट्रोक से संबंधित बीमारी बढ़ रही है, लेकिन चिंता की बात ये है की स्ट्रोक के बारे में और तत्काल चिकित्सा उपचार पाने के लिए लोगो में जागरूकता उतनी नहीं है जब कि हार्ट अटैक में रोगी तुरंत उपचार करवाता है। इस क्षेत्र में मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की व्यापक न्योरो टीम जैसे डॉ. रजनीश कछारा (डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूरोसाइंसेज़), डॉ. वरुण कटारिया (न्यूरोलॉजिस्ट कंसलटेंट), डॉ. वी.वी नादकर्णी(न्यूरोलॉजिस्ट कंसलटेंट), डॉ. पुलक निगम(न्यूरो सर्जन कंसलटेंट), डॉ. स्वाति चिंचुरे (न्यूरोरेडियोलोजी इंटरवेंशनल कंसलटेंट) और डॉ. रचना गुप्ता(पेडियेट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट कंसलटेंट) लगातार काम कर रहे है l मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में न्योरो संबधित बीमारियों को लेकर नवीनतम तकनिकी से उपचार होता है l
वर्ल्ड स्ट्रोक डे जो को हर वर्ष अक्टूबर की 29 तारीख को मनाया जाता है इस अवसर मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ‘गोल्डन ऑवर’ (सुनहरे घंटे) के महत्व को समझाने के लिए मीडिया के माध्यम से जागरूकता फेलाने के प्रयास के तहत एक प्रेस वार्ता आयोजित की गईl
मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल डॉ. रजनीश कछारा (जाने-माने न्यूरोसर्जन और डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूरोसाइंसेज़) बताया की- ‘गोल्डन ऑवर’ (सुनहरे घंटे) में उपचार न केवल जीवन बचा सकता है बल्कि स्ट्रोक से पीड़ित व्यक्ति को काफी हद तक साधारण जीवन में लौटने में भी मदद कर सकता है। अफसोस की बात है कि ज्यादातर लोगों को स्ट्रोक के इस ‘गोल्डन ऑवर’ के बारे में पता नहीं है। स्ट्रोक के निम्नलिखित लक्षण अकेले या संयोजन में प्रकट हो सकते हैं:
- चेहरे, हाथ या पैर में शरीर के दोनों ओर कमजोरी या सुन्नता या पक्षाघात होना
- बोलने या समझने में कठिनाई होना
- चक्कर आना, संतुलन खोना या बिना किसी स्पष्ट कारण के जमीन पर गरना
- एक या दोनों आँखों से दिखाई न देना, अचानक धुंधला या कम दिखाई देना
- सामान्य रूप से गंभीर और अचानक सिरदर्द होना, या बिना किसी स्पष्ट कारण के सिरदर्द के पैटर्न में परिवर्तन होना
- निगलने में कठिनाई होना है
आगे उन्होंने बताया की- “अगर स्ट्रोक बड़ा है जिसके कारण अगर पेशेंट को बेहोंशी आ जाए तो एमआरआई और सीटी स्कैन के माध्यम से उसकी गंभीरता को समझना पड़ती है l अगर ब्लड का थक्का बड़ा है और ब्रेन में सुजन भी है तो उसमे जान का ख़तरा हो सकता है, इस तरह की परिस्थिति में ऑपरेशन करना पड़ता है l अगर गले की नसों के ब्लोकेज के कारण स्ट्रोक आया है तो केरोटेक एंड्रेकटॉमी/ केरोटेक एन्जिओप्लास्टी के माध्यम से मस्तिष्क में जाने वाली नसों को खोल दिया जाता है जिससे रक्त का प्रवाह मस्तिष्क में सुचारू रूप से हो सके और पेशेंट की जान बचा सके |”
मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोलोजिस्ट कंसलटेंट डॉ. वरुण कटारिया ने बताया की – स्ट्रोक एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता है और इससे मृत्यु हो सकती है। ब्रेन स्ट्रोक एक आपात स्थिति है जो किसी भी समय हो सकती है, चाहे आप चल रहे हों, बैठे हों या सो रहे हों। यह मस्तिष्क के हिस्से में रक्त की आपूर्ति कम होने के कारण होने वाली स्थिति है। स्ट्रोक होने के बाद 4 घंटे में मरीज अस्पताल पहुंचता है तो उसे थ्रोबोलीटिक दवा का दी जाती है जिसके कारण धमनी में मौजूद ब्लॉकेज खुल जाता है।
मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की न्यूरोरे इंटरवेंशनल कंसलटेंट डॉ. स्वाति चिंचुरे ने बताया की – ब्रेन स्ट्रोक के ठीक होने की संभावना उस समय पर निर्भर करती है जिसमें रोगी को उपचार दिया गया था। स्ट्रोक मस्तिष्क में रक्त प्रवाह करने वाली नसों में ब्लॉकेज होने के कारण होता है। कुछ मस्तिष्क की कोशिकाएं तो तुरंत ही मर जाती हैं पर कुछ मस्तिष्क के हिस्से को वक्त पर नस को खोलने से पुनर्जीवित किया जा सकता है। यदि अगले कुछ घंटों में रक्त का प्रवाह अगर ठीक हो गया तो मरीज को लकवे से बचाया जा सकता है। जब बहुत बड़ी मात्रा में रक्तवाहिका अवरोधित हो जाती है या मरीज 4 घंटे के बाद अस्पताल में पहुंचता है तो ऐसे मरीजों का न्यूरोइंटरवेंशन तकनीक द्वारा इलाज किया जा सकता है। न्यूरोइंटरवेंशन या एंडोवेस्कूलार विधि में पैरों की रक्त की नली से गर्दन और दिमाग की एंजियोग्राफी की जाती है। अगर थक्का बहुत बड़ा है तो स्टेंट की मदद से उसे हटाया जाता है। इस खास इलाज को थ्रोम्बेक्टोमी (Thrombectomy) बोलते हैं और यह मस्तिष्क अटैक/स्ट्रोक के 8 घंटे बाद तक किया जा सकता है। इस इलाज के बाद नस के खोले जाने से दिमाग में रक्त का प्रवाह पहले जैसा हो जाता है और मरीज को पहले जैसी सामान्य स्थिति में लौट आने में मदद मिलती है।
आगे मेदंता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की न्यूरोसाइंसेज़ टीम ने स्ट्रोक से सम्बंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारिया दी जिससे की स्ट्रोक को समझा जा सके और आम जनता में इसके बारे में जागरूकता आ सके :-
स्ट्रोक के प्रारंभिक संकेत और लक्षण:
एक स्ट्रोक के दौरान, हर एक सेकंड मायने रखता है, जो किसी भी गंभीर स्थिति की संभावना को कम करने में मदद कर सकता है। तीव्र और प्रभावी उपचार एक स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क में होने वाली क्षति को कम करने में सहायता कर सकता है। ऐसी स्थिति स्ट्रोक के शीघ्र स्ट्रोक की चेतावनी संकेतों और लक्षणों को समझना महत्वपूर्ण है, ताकि व्यक्ति तत्काल कार्रवाई कर सके:
- लगातार तेज सिरदर्द
- दोनों आँखों से देखने में कठिनाई होना
- शब्दों को समझने में भ्रम और समस्या का अनुभव करना
- चेहरे, हाथ और पैर में अचानक सुन्नता
- लकवा महसूस करना और संतुलन या समन्वय (coordination) कमजोर होना , चलने और संतुलन में कठिनाई होना
आपातकालीन समाधान:
प्रभावी उपचार सुनिश्चित करने के लिए स्ट्रोक को समझना पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है। यदि रोगी को समय पर ठीक से प्रबंधित किया जाए तो उपचार प्रभावी हो सकता है। एफ ए एस टी (F A S T) के नियम का पालन करते हुए यदि किसी व्यक्ति को स्ट्रोक से पीड़ित होने का संदेह होता है तो आप उसकी मदद कर सकते है । यदि पहले 60 मिनट रोगी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और यदि ठीक से इलाज किया जाए, तो उनके बचने की संभावना बढ़ जाती है।
F (फेस): मुस्कुराने के लिए कहने पर मरीज का चेहरा झुक जाता है या नहीं, इसकी जांच करें।
A (आर्म्स): स्थिति का बारीकी से विश्लेषण करता है और रोगी को दोनों हाथ उठाने के लिए कहता है। यदि बाहें नीचे की ओर गिरती हुई दिखें तो तुरंत कार्रवाई करें।
S (स्पीच): जांचें कि क्या रोगी बड़बड़ा रहा है और सामान्य स्वर में बोलने में असमर्थ है।
T (टाइम): इस में समय का बहुत मत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि पीड़ित की स्थिति गंभीर है तो तुरंत चिकित्सा सुविधा दें।
यदि कुछ मिनटों के बाद लक्षण गायब हो जाते हैं, तो संभावना है कि रोगी को ‘माइनर अटैक’ या ‘मिनी स्ट्रोक‘ का सामना करना पड़ा हो। एसी स्थिति को अनदेखा करना रोगी के स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है।
‘ब्रेन स्ट्रोक’ का रोगी होने पर क्या करें:
जांचें कि क्या वे सांस ले रहे हैं। अगर वे सांस नहीं ले रहे हैं, तो सीपीआर करें। अगर उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है तो उनके शरीर से सारे टाइट कपड़े हटा दें। व्यक्ति को आरामदायक स्थिति में रहने दें। उन्हें अपने सिर को थोड़ा ऊपर उठाकर एक तरफ लेटने दें। यदि रोगी कमजोर स्थिति में है तो उसको इधर उधर करने से बचें। उन्हें खाना या तरल पदार्थ देने से बचें।
ब्रेन स्ट्रोक के दौरान रोगी को अस्पताल की आपात चिकित्सा इकाई में ले जाएं:
एक व्यक्ति जिसे ब्रेन स्ट्रोक हुआ है, उसे तत्काल उपचार की आवश्यकता है और मस्तिष्क में उनके रक्त प्रवाह को बहाल करने की आवश्यकता है।
मेदंता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की न्यूरोसाइंसेज़ टीम कुछ टिप्स देते हैं जिससे कोई भी व्यक्ति जीवनशैली में बदलाव कर स्ट्रोक से कैसे बच सकता है- “वे मरीजों को धूम्रपान बंद करने, नियमित व्यायाम (प्रति दिन 20 मिनट, सप्ताह में तीन से चार बार) या उन्हें लंबे समय तक टहलने की सलाह देते हैं। इससे उन्हें वजन कम करने, तनाव दूर करने और फिट रहने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, यह सबसे अच्छा होगा अगर युवा अपने रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और रक्त शर्करा में वृद्धि के बारे में सतर्क रहें। यदि उन्हें ऊपर दिए गए किसी भी लक्षण का अनुभव होता हो, तो डॉक्टर का निदान और सलाह लेना महत्वपूर्ण है।“