हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट की ओपीडी मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल इंदौर में शुरू

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इंदौर : इंदौर एवं मध्यप्रदेश  के नागरिकों के लिए विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा लाने की अपनी प्रतिबद्धता को जारी रखते हुए, मेदांता ने इंदौर स्थित मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में रक्त से सम्बंधित बीमारियों के इलाज के लिए ओपीडी सेवाएँ शुरू की है । जहा मेदांता केंसर इंस्टीट्यूट, गुड़गांव के डायरेक्टर-हेमेटोलॉजी, हेमेटो-ऑन्कोलॉजी और स्टेम कोशिका प्रत्यारोपण डॉ. नितिन सूद इस सुविधा का नेतृत्व करेंगे। वे और सीनियर डॉक्टर्स की टीम महीने में एक बार आकर ओ पी डी के माध्यम से अपनी सेवाए देंगे l इस  ओपीडी सुविधाएँ के माध्यम से इंदौर और मध्य प्रदेश के नागरिकों को रक्त और रक्त संबंधी बीमारियों जेसे ल्यूकेमिया, मायलोइड्सप्लास्टिक सिंड्रोम, लिम्फोमा, मल्टीपल मायलोमा, एमाइलॉयडोसिस, अस्थि मज्जा / स्टेम सेल प्रत्यारोपण, रक्तस्राव और थक्के विकार, थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया, दूसरों के बीच जटिल एनीमिया जेसी कई बीमारियों के इलाज संबंधित विश्व स्तरीय सुविधाएँ मिल सकेगी l

बोन मैरो हमारे शरीर में एक फैक्ट्री की तरह काम करता है, जिसमें ब्लड सेल्स का निर्माण होता है। बोन मैरो में रेड ब्लड सेल (लाल रक्त कणिकाएं) बनते हैं जो ब्लड के जरिए शरीर में ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्टेशन करते हैं। व्हाइट ब्लड सेल्स (श्वेत रक्त कणिकाएं) बनते हैं जो इंफेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं और इसी में प्लेटलेट्स भी बनते हैं जो ब्लीडिंग से बचाते हैं। कई गंभीर बीमारियों के कारण बोन मैरो इतना बुरी तरह प्रभावित होता है कि इसका ट्रांसप्लांटेशन करना होता है। ऐसी स्थिति में बोन मैरो और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कर मरीज को नई जिंदगी दी जाती है। यह जानकारी मेदांता केंसर इंस्टीट्यूट, गुड़गांव के डायरेक्टर डॉ. नितिन सूद ने अपनी ओपीडी के दोरान अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बोन मेरो ट्रांसप्लांट के पहले और बाद में मरीज के जीवन में होने वाले परिवर्तन की जानकारी भी दी।

डॉ. नितिन सूद ने बताया की “ “सामान्यत: इस प्रक्रिया के चार से छह सप्ताह के बाद मरीज को घर भेज दिया जाता है लेकिन उसे अपनी लाइफ स्टाइल पूरी तरह बदलना होती है। उसे तय समय अवधि तक आइसोलेशन में रहकर खुद को लोगों के अनावश्यक मेल-मिलाप और संपर्क से दूर रखना चाहिए। इस दौरान हाइजीन का ख्याल रखते हुए हाई प्रोटीन डाइट लेना चाहिए ताकि इंफेक्शन की तमाम संभावनाओं को खत्म किया जा सके।“

डोनर और रेसिपिएंट के बीच मेचिंग पर भी निर्भर है सफलता

बोन मैरो अथवा स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सफलता डॉक्टर, तकनीक और दवाई के अलावा डोनर और रेसिपिएंट के बीच एचएलए (HLA) मेचिंग पर भी निर्भर करती है। ट्रांसप्लांटेशन की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए कई तरह की जांच और प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद प्रोसीजर की जाती है। कुछ मामलों में बोने मैरो डिसफंक्शनिंग हो सकती  है लेकिन इसके होने की सम्भावना कम होती है।

इस तरह इस तरह डॉ. नितिन सूद ने बोन मैरो एवं स्टेम सेल ट्रांसप्लांट विषय से जुड़ी विभिन्न जानकारियां दीं और इसके महत्व को उजागर किया।

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