क्या अब भी नहीं सीखेंगे सड़क पर चलने वाले…??

0

Jai Hind News
Indore
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में काम करने वाले एक युवा इंजीनियर की मृत्यु हो गई। सड़क पर डम्पर से टकराए और उनके सिर के टुकड़े हो गए, ब्रेन बाहर सड़क पर निकल कर बिखर गया और तत्काल मौत…
इस मौत का कारण यह हादसा बाद में साबित हुआ, लेकिन पहली जिम्मेदारी उस गुस्से की है जो बाइक चालक को आया, सड़क पर बहस हुई फिर पिटाई, फिर धक्का-मुक्की और आखिरी में हादसा जिसमें युवा इंजीनियर पड़ोस से गुजर रहे डंपर के नीचे आ गया और चंद सेकेंड्स में सबकुछ खत्म हो गया।

इस घटनाक्रम के बारे में जरा गौर से सोचिए, चिंतन और मनन कीजिए कि क्या इस छोटी सी घटना का यही अंजाम होना था या इसे टाला भी जा सकता था। इसके लिए आपस में टकराने वाले दोनों वाहन चालकों को क्या करना था…. अपनी गलती मान कर, सामने वाले को माफ कर आगे ही तो बढ़ना था। अगर ऐसा होता तो कई जिंदगियां बर्बाद होने से बच सकती थीं।

अब बात करते हैं शहर और देश के मौजूदा हालातों की…

इस शहर में हर व्यक्ति जल्दी में है। ईगो, गुस्सा और खुद को बड़ा और अधिक प्रभावशाली सिद्ध करने की होड़ मची है। इस देश में प्रति घंटे 17 लोग, प्रतिदिन 414 और साल में 151,113 लोग सिर्फ सड़क दुर्घटना में मृत्यु का शिकार होते हैं। ये आंकड़े वर्ष 2019 के हैं। इन्हें कोई नहीं मारता। इन्हें खुद का गुस्सा, संयम की कमी और मूर्खता मारती है… और भुगतना पूरे परिवार को पड़ता है।

अब फिर से इसी हादसे की बात करते हैं… जैसा अखबरों में है कि जिनकी मृत्यु हुई (सिद्धार्थ सोनी) वे कार में थे। पीछे से दुपहिया वाहन को टक्कर मारी, फोन पर बात कर रहे थे गाडी चलाते हुए, दुपहिया सवार उनसे बहस करने आया। बहस कर के दोनों अलग अलग हो कर जाने लगे, तभी न क्या जाने किस्मत खराब थी, पुनः पलटे ओर हाथापाई करने लगे, उसी दौरान डम्पर आ रहा था। उसने टक्कर नहीं मारी, बल्कि ये दोनों लड़ते हुए डंपर से टकराए और एक उसके नीचे आ गया, नतीज़ा एक युवा की मौत।

दोनों में से अगर एक भी यदि गलती मान लेता तो दोनों के परिवार आज दुःख, अवसाद में नही होते। इंदौर के लोग विशेषकर युवा तत्काल झगड़ा करते हैं। ट्रैफिक सिग्नल और चौराहों पर ये बेहद आम बात है।

मृतक सिद्धार्थ की शादी की पहली सालगिरह है दो दिन बाद। दूसरे युवा का जीवन भी आसन नहीं होगा। गिल्टी, हादसा और गैर इरादतन हत्या के केस का बोझ अब उसे हमेशा सताएगा। सोचने की बात यह है कि क्या अब भी नहीं सीखेंगे इंदौर वाले। मैं इस हादसे के वीडिओ को देखने के बाद यह हमेशा के लिए सीख गया हूं कि अनहोनी को टालना हमारे व्यवहार और हमारे हाथ में है। इस शहर को अपना संयम ट्रैफिक के क्षेत्र में दिखाना बेहद ज़रूरी हो गया है, नहीं तो यह होता ही रहेगा।

मेरा आग्रह है बच्चों से, पत्नियों से, माता-पिता और भाइयों से कि वे अपने घर के सदस्यों को भावनात्मक संबंधों के आधार पर बार-बार यह समझाएं कि जीवन अनमोल है और किसी की भी मृत्यु की भरपाई नहीं हो पाएगी। इसलिए परिवार की खातिर गुस्सा त्यागें, संयम से काम लें, घर पर एक पूरी दुनिया आपका इंतज़ार करती है। क्योंकि आपके घर वालों की दुनिया बाहर नहीं आप में ही बसती है। उनकी दुनिया आप ही हैं।

सिद्धार्थ को श्रद्धांजलि। ईश्वर परिवार को दुःख सहने की शक्ति दें… और निवेदन यह कि अब सड़क पर लड़ना बंद करें और ट्रैफिक नियमों का पालन करें। ये आपकी सुरक्षा के लिए ही हैं। खुद का और दूसरों का जीवन बचाइए, इससे महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है।


– डॉ आर.पी. माहेश्वरी

(लेखक सीनियर डॉक्टर हैं और ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here